राधा की कहानी सुनकर सब स्त्रियों में जोश आ गया था । अनुसूइया जी ने राधा की वीरता और उसके कृत्य की भूरि भूरि प्रशंसा की । कहा "जब कानून अपना काम नहीं करता है और सिस्टम की पेचीदगियों का फायदा अपराधी उठाते हैं तब किसी न किसी राधा को आगे आना पड़ता है । मुझे लगता है कि यहां पर बैठी हुई हर स्त्री सिंहनी ही है । आज राधा ने अपनी वीरता की कहानी से एक सकारात्मक माहौल तैयार किया है । तो क्यों ना हम एक दूसरे के कृत्यों और सोच से वाकिफ हों ? अत: मैं चाहूंगी कि सब महिलाएं अपनी अपनी कहानी सुनाएं जिससे पता चल सके कि वे अपराधी हैं या सिंहनी हैं । मैं इसके लिए सबसे पहले मंदोदरी को आमंत्रित करती हूं कि वे यहां आयें और अपनी कहानी सुनायें "। अनुसूइया जी की बातों का सब कैदियों ने खुले दिल से स्वागत किया और जोरदार तालियां बजाकर प्रसन्नता का इजहार भी किया । इतने में मंदोदरी उठी और सिंहनी की तरह चलती हुई वहां आई । वह अपनी कहानी सुनाने लगी
"बहनो, आपको तो पता ही होगा कि "मंदोदरी" कौन थी ? क्या आपको पता है" ?
सभी महिलाओं ने इंकार की मुद्रा में सिर हिला दिया । इससे मंदोदरी को बहुत आश्चर्य हुआ और कहने लगीं
"हम स्त्रियों ने अपनी नायिकाओं को भुलाकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है । पहले हम अपनी बेटियों के नाम श्रेष्ठ और आदर्श महिलाओं के नाम पर रखा करते थे जिससे हम लोग उस नायिका के गुणों के बारे में जान सकें और उन्हें हम अपना सकें । मगर इस आधुनिकता की अंधी दौड़ ने हमें हमारे आदर्श चरित्रों से विमुख कर दिया और हम लोग ये आलतू फालतू "मायरा, नायरा, समायरा" टाइप के नाम अपनी बेटियों के रखने लगे ।
मेरा नाम मंदोदरी है । मंदोदरी यानि कि विश्व विख्यात रावण की पत्नी । वही रावण जिसका पुतला हम लोग हर वर्ष 'विजय दशमी' को फूंकते हैं मगर उसकी पत्नी 'मंदोदरी' की पूजा आज भी करते हैं । यही हमारी संस्कृति है । इस संस्कृति में व्यक्ति के कार्यों, आचरण और व्यवहार के आधार पर उसका मूल्यांकन किया जाता है और इससे तय किया जाता है कि वह व्यक्ति 'अनुकरणीय' है या नहीं । यदि वह अनुकरणीय है तो हम अपने बच्चों के नाम उस व्यक्ति के नाम पर रख देते हैं । जैसे मेरा नाम मंदोदरी रखा गया था । मंदोदरी रावण की पत्नी अवश्य थी लेकिन वह एक सुन्दर, बुद्धिमान , नेक और पतिव्रता स्त्री थी । उसने रावण को बहुत समझाया कि एक पराई स्त्री का अपहरण करना वीरता नहीं कायरता है । इसलिए वह प्रभु श्रीराम से क्षमायाचना करते हुए माता सीता को ससम्मान वापस लौटा दें । पर रावण तो कामांध हो गया था इसलिए उसने कभी मंदोदरी का कहना नहीं माना और अपने कुल का विनाश करवा लिया । मगर मंदोदरी ने एक बुद्धिमानी और पत्नी के कर्तव्यों की एक मिसाल कायम की थी कि एक 'राक्षस' जाति में रह कर भी उच्च आदर्शों पर चला जा सकता हैं । इसलिए इस समाज ने भी उन्हें उनके महान कार्यों का यह सम्मान दिया कि लोग अपनी बेटियों का नाम उसके नाम पर रखने लगे । कैकेयी तो महाराज दशरथ की सबसे प्रिय रानी थीं लेकिन कोई भी स्त्री अपनी बेटी का नाम 'कैकयी' नहीं रखती है । अलबत्ता 'कौशल्या' और 'सुमित्रा' नाम खूब मिल जायेंगे आपको" ।
मंदोदरी की इस बात पर सब महिलाओं ने करतल ध्वनि से उल्लास व्यक्त किया और एक जोरदार नारा लगाया
"महासती मंदोदरी
अमर रहे, अमर रहे" ।
इसके बाद मंदोदरी ने अपनी कहानी सुनाना आरंभ किया ।
मैं कॉलेज में पढती थी और रोजाना पैदल पैदल कॉलेज जाया करती थी । हमारे घर के पास ही कॉलेज था । एक दिन मैं कॉलेज जा रही थी तो मैंने देखा कि बाजार में भीड़ इकठ्ठी हो रही है । मुझे भी कौतुहल हुआ कि ये भीड़ क्यों इकठ्ठी हुई है ? मैं कारण जानने के लिये भीड़ में घुस गई और आगे पहुंच गई । मैंने देखा कि एक गुण्डा एक दुकानदार को बुरी तरह मार रहा है और कह रहा है "साले तेरी हिम्मत कैसे हुई मुझसे पैसे मांगने की ? आज तुझे मैं बतलाता हूं कि 'इन्दर सिंह' क्या चीज है ? आज सब दुकानदार कान खोलकर सुन लें , मैं जिस दुकान पर जाऊं , जो भी सामान पसंद करूं , उसे मेरे घर पहुंचाना होगा । और अगर मुझसे पैसे मांगे तो उसका भी वही हाल होगा जो इसका हो रहा है" ।
और उसने उस दुकानदार को 'धुनना' शुरू कर दिया । इतने लोग उस बेचारे दुकानदार को पिटते देखते रहे मगर उसे बचाने हेतु आगे कोई नहीं आया । दुष्टों के हौंसले इसलिए भी बढते हैं कि सज्जन लोग दुष्टता का मिलकर भी विरोध नहीं करते हैं । यदि दुष्टों का विरोध करना शुरु कर दें तो ऐसे लोग नीच कर्म करने से बाज आयें । मगर सब लोग डर के मारे कायर बने रहते हैं ।
मैं उन लोगों को उनकी कायरता के लिए मन ही मन धिक्कार रही थी कि इतने में एक नवयुवक आगे आया और उस गुण्डे को ललकार कर बोला
"अरे अधम , छोड़ दे उस आदमी को । उसने तेरा क्या बिगाड़ा है ? वह तो अपने माल का पैसा मांगेगा ही । इस तरह अगर वह फ्री में देता रहेगा तो अपने परिवार का पेट कैसे भरेगा" ?
"तू कौन है साले ? चुपचाप भाग जा यहां से नहीं तो मैं तेरा वो हाल करूंगा कि तेरी सात पुश्तें भी इस मार को याद करेंगी" ।
"मेरा नाम ज्ञान सिंह है और आज मैं तुझे बता ही देता हूं कि मैं कौन हूं" ?
और इस तरह उन दोनों में "दंगल" शुरू हो गया । थोड़ी देर में ही ज्ञान सिंह ने इन्दर सिंह को मार मारकर लहूलुहान कर दिया । इन्दर सिंह ज्ञान सिंह के कदमों में लेट गया और जान की भीख मांगने लगा । ज्ञान सिंह ने उसे छोड़ दिया । ज्ञान सिंह की बहादुरी और साहस ने उसे हीरो बना दिया । सब लोगों ने ज्ञान सिंह को कंधों पर उठाकर लिया । ज्ञान सिंह सबके दिलों पर छा गया । मैं भी उसे अपना दिल दे बैठी ।
एक दिन मैं उसी रास्ते से कॉलेज जा रही थी । ज्ञान सिंह ने मुझे देखा और वह मेरी सुंदरता पर रीझ गया । उस दिन हम दोनों ने निगाहों निगाहों में ही एक दूसरे को अपना लिया । बाद में वह हमारे घर आया और पापा से मेरा हाथ मांग लिया । इस तरह मेरा विवाह ज्ञान सिंह के साथ हो गया ।
हम लोग बड़े खुश थे और मजे से रह रहे थे । ज्ञान सिंह की ताकत और बढने लगी । अपनी ताकत के घमंड में ज्ञान सिंह कमजोर व्यक्तियों पर अत्याचार करने लगा । वही ज्ञान सिंह जो कभी कमजोर व्यक्तियों के पक्ष में खड़ा होता था , जिसकी वीरता पर मैं रीझ गई थी , वही ज्ञान सिंह आततायी बन गया था । मैंने उसे बहुत समझाया मगर उस पर तो ताकत का भूत सवार था तो वह कैसे मानता ?
धीरे धीरे वह भी एक गुण्डा बन गया था । उस इलाके में एक नया थानेदार आया था । एक दिन उस थानेदार की पत्नी शॉपिंग करने बाजार आई तो उसे ज्ञान सिंह ने देख लिया । थानेदार की बीवी बहुत सुंदर थी । ज्ञान सिंह उसकी सुंदरता में ऐसा खोया कि उसका सारा ज्ञान उसमें डूब गया और वह उसे उठा लाया । जब मुझे इस बात का पता चला तो मैं फुंफकार उठी । मुझसे एक स्त्री का इस तरह अपमान बर्दाश्त नहीं हुआ । मैंने उसे बहुत समझाया कि वह इसे छोड़ दे । यह कोई बहादुरी का काम नहीं है । मगर वह नहीं माना और वह दुष्ट उस स्त्री के साथ दुष्कर्म करने को उद्यत हो गया । वह दृश्य मेरी सहन सीमा को लांघ गया और मैंने वहां पड़ा हुआ एक 'गंडासा' उठा लिया और एक ही वार में उसका सिर धड़ से अलग कर दिया । मुझे इस बात का मलाल नहीं है कि मैंने अपने पति की हत्या कर दी बल्कि इस बात का फख्र है कि मैंने एक स्त्री के सम्मान पर आंच नहीं आने दी । इस कृत्य पर मुझे सात वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई मगर मुझे यह सजा नहीं अपितु सम्मान लगती है । बताओ बहनो , मैंने क्या कुछ गलत किया" ?
इससे पहले कि कोई कुछ बोलता , सिया खड़ी हुई और जोरदार ताली बजाते हुए कहने लगी "मंदोदरी जी ने अपने पति का वध नहीं किया अपितु एक कामांध राक्षस का विनाश किया है । इनकी वीरता की जितनी भी प्रशंसा की जाये , कम ही है । एक बार जोर से बोलिए
"मंदोदरी सिंहनी की"
"जय हो जय हो" के नारों से पूरा हॉल गूंज उठा ।
श्री हरि
18.10.22
Gunjan Kamal
18-Oct-2022 10:07 PM
बहुत खूब
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Hari Shanker Goyal "Hari"
19-Oct-2022 03:34 AM
धन्यवाद मैम
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Simran Bhagat
18-Oct-2022 07:37 PM
Bahut khoob👌
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Hari Shanker Goyal "Hari"
19-Oct-2022 03:33 AM
धन्यवाद जी
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Shnaya
18-Oct-2022 03:16 PM
बहुत खूब
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Hari Shanker Goyal "Hari"
19-Oct-2022 03:33 AM
धन्यवाद जी
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